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Jun 17, 20201 min
By: Sumit kumar
निगाहें उस आसमान पे रख,
परिंदों के हमसफ़र बन गए
ख्वाब जब पूरे हुए,
ना जाने कब मुख़्तसर बन गए
आसमान में कदम रख,
कितनो की नज़र बन गए
प्रदेश पीछे छोड़ आये अब,
यादें अब राह-गुज़र बन गए
बरसो बाद कुछ लोग दिखे हैं,
सारे चेहरे दीदा-ए-तर बन गए
जिन गलियों में एक उम्र गुज़री
अब तोह वह भी शहर बन गए
निगाहें उस आसमान पे रख,
परिंदों के हमसफ़र बन गए ||