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Let’s fly with wings not chains


BY Mansi

 

आज़ाद हैं हम 

बेफ़िकर हैं हम 

इस ज़िंदगी में नहि , हर ज़िंदगी में हैं हम

एक पंछी की तरह , कभी एक छोटे बच्चे की तरह

ना ख़ुद का ग़म ना ख़ुद की परवाह!

कहने को तो यह बातें अछी लगती हैं 

पर क्या आज़ादी में रहकर भी जकड़ती हैं ?

वो आक्रोश ,वो डरना 

किसी जलती आतिश मेंख़ुद को डूबना,

यह कैसा दस्तूर हैं ऐ -बेफ़िकर इंसान 

ख़ुदाँ की हसरत को समझ

और उसकी दी फ़र्याद और हयात।

क्या अजीब इत्तेफ़ाक हैं , 

की हम बोलकर भी नहि समझ पाते 

ना सुनकर जान पाते 

देखकर, महसूर कर इकरार ज़रूर करलेते हैं ,

एक पंछी की उड़ान को क्यू इनायत समझ लेते हैं ?

वो तो हम से बहुत अलग हैं ,

पर ख़ुद पर कभी इख़्तियार नहीं उसको ,

उसकी उड़ान में भी ख़ुशी हैं 

वो ग़म हैं 

वो मुस्कान हैं ,

जो उसके हौसले की जान हैं ।

शायद यह हम समझने में चूक जाते हैं ,

अपने जज़्बात सबको बताते हैं!

औरों की ख़ैरियत सही , अपना ख़याल क्या रखना ?

आख़िर में ख़ुद की सोच के साथ हैं दफ़ना ।

एक ज़िंदगी हैं जो लाज़मी हैं ,

ख़ुद को इतना मत दबा ए दिल ए नादान,

अभी नहीं उठा हैं तो उठजा , क्यूँकि अभी भी खुला हैं मैदान ।



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